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Showing posts from 2016

tera wajood

तेरा वजूद, तेरी कहानी ,तेरी मोहब्बत  सब तेरे होने से है, मिट्टी के शरीर से परे ,तू एक  जान है।   जो बसे जहाँ, जिस शहर  रौशन हुआ वो मकान है।  बस युहीं मुस्कुराते हुए तू  सिखाता चल जीने का तरीका बढ़ती उम्र के साथ ,तेरी तकलीफें कम होती जाएँ पच्चीस का हो रहा आज तू, और बोलूँ मैं यही  तेरी निन्यानबे जन्म तारिक जब आये।  तेरी सोच , तेरा नज़रिया सब तेरे होने से है , मिट्टी के शरीर से परे ,तू एक  जान है।   जो बसे जहाँ, जिस शहर  रौशन हुआ वो मकान है। 

Dear Diary

जब किसी से कुछ कह न पाओ, वो अलमिराह में हूँ वही , ज़रा कपड़ो से ढकी, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में छिपी - चाबी,रूमाल,ऑफिस की फाइल के तले कागज़ संग बंधे हुए तेरे एहसास बांधे हुए - तेरी  डायरी बेफिक्र होकर मिल सकता तू मुझ से न वक़्त की पाबन्दी , न गहरे रिश्तों का बोझ बस तू और तेरी सच्चाई - तेरी मुस्कराहट ,तेरे आंसू जब किसी से बाँट न पाओ वो अलमिराह में हूँ वही , बस याद रखना और याद रखना की मैं तो बस कागज़ हूँ कुछ ऐसे लिखना अपनी कहानी  की कागज़ जल जाए पर कहानी न जल पाए। - तुम्हारी डायरी 

azaad

घबराहट को  घर न  बना वो तुझे कैद करेंगे तेरी उम्मीदें पे परदे डालेंगे रौशनी को काम करेंगे जो तुझे करना वो तुझे पता बस मेहनत और दिशा नापते रहे तो ये आस्मां भी रास्ता दिखायेगा बस घबराहट को  घर न  बना आज़ाद हो तू आज़ाद हो तेरे ख्याल 

उम्र ,गिनती और गणित

उम्र ,गिनती और गणित घूम रहा ये धरती का गोल एक हिसाब वहाँ से बाकी गणित की किताब से गिनती निकली अपनी सेना ले के अनगिनत सिपाही उसके हमारी उम्र तो बस खुशाल ज़िन्दगी थी जब तक न मिली थी इस सेना से अब उम्र भी एक संख्या सिपाही है एक बरस में मोर्चा अगली संख्या को  मिलती है आज फिर से कसम खाते है उम्र को संख्या सिपाही से आज़ाद कराएँगे उम्र हमारी बिना गिनती के , बस उसे एक खुशाल ज़िन्दगी बनाएंगे  

मासूम

 मासूम सी मेरी ज़िन्दगी माँ पा  के हाथों के सहारे संभल रही थी हर डगर उनकी , मेरी भी डगर बन रही थी बेफिक्र हो कर बस गुब्बारे को पकड़ना था बारिशों में छतरी के बहार झांकना  था वो मासूमियत मेरी जान मेरी ज़िन्दगी थी मेरी ज़िन्दगी मेरी जान अभी भी है बस मासूम नहीं है शायद अब ज़्यादा फ़िक्र है बरसात मैं गीले होने की अब ज़्यादा फ़िक्र है गुब्बारे के फ़िज़ूल होने की अफ़सोस न कोई ,क्योंकि जब जब टकराता हूँ किसी नन्ही जान से उसके बचपन से तो मेरी मासूमियत जी उठती और मुस्कुराहटें ही मुस्कुराहटें चारों दिशा गूँज उठती

नमन

वो तारों की चमकती चादर मेरे आस्मां को चमका रही थी मेरी सोच ही उस आस्मां को मेरा बना रही थी  वरना तो  वो बादलों के बंजारे टोपे बेफिक्री में उड़ रहे थे  चारों दिशाओं की गूँज थी पर वो मेरी शान्ति ही थी जो उस  गूँज को पहचान  दे रही थी  वरना तो अदृश्य सी हवाओं  की धारा  बह रही थी मुस्कुरा कर नमन है उस रचियता  को  बरस रही जिसकी कृपा हर पल है , मेरी सोच ही इस वक़्त को पल बना रही वरना तो सूरज डूबा  रोज़ ही करता है  और वक़्त यूँही बीत जाता 

सौदे में सुकून

कहीं सीने में जब  धड़कन की  रफ़्तार तेज़ हो उठीती खून की हलचल बहते बहते हज़ारों ख्याल संग लाती दिल में वो हज़ारों ख्याल वो खून आते है पर सौदे में अक्सर सुकून और चैन के ये सौदा न होता तो धड़कने रूक जाती वो हलचल थम जाती दो लम्हा बीता दिए बिना सुकून और चैन के और थक कर जब ज़मीन पर टूटा तो एक हवा का झोंका कुछ दे गया मुस्कराहट की  वो पोटली , और हज़ारों नए ख्याल नया खून इस बार सौदे के लिए न सुकून था न चैन झाँका तो पाया सब वहम था न सौदा था न कोई पोटली में  मुस्कराहट और कहीं न गया था मेरा सुकून मेरा दिल मेरा ख्याल और मेरा ही था वो खून अब हलचल भी कह कर होती है आहिस्ता आहिस्ता दिल  में बहती है ।

समय

कण कण सज कर बने ये नाज़रे आँखों के सामने है सारे के सारे हम  भी यही  ये कण भी  सारे यही पर  कुछ आगे बढ़ रहा , कुछ भी  स्थिर नहीं घूम रही ये धरती , धोखा लगता है पर नहीं ! है सब सामने और हम भी वही पर  कुछ भी  स्थिर नहीं ,कुछ तो आगे बढ़ रहा है  वो समय , ये  आसमान ये  ज़मीन ये बरखा ये  लय सबको बाँधे हुए है ये समय

शिष्टाचार के नियम

1 बड़ो के आदर में हाथ जोड़ना , नमन करना 2 छोटों को स्नेह कर उनके साथ मुस्कुराना  3 बिना किसी भेद भाव के हर किसी के साथ  मिलना ,ही परम आचार - शिष्टाचार है।   4 अपनी वाणी को हमेशा निर्मल रखना  5  सत्य वचन से कभी न मुह मोड़ना  6  अपनी सोच को प्रेम से बताना क्रोध न करना  , ही परम आचार - शिष्टाचार है।   7 प्रकृति की रक्षा  करना 8. पशु पक्षियों को आज़ाद ही रहने देना  9. अपने मित्रों को भी प्रेरित करना की प्रकृति की  रक्षा करें  , ही परम आचार -शिष्टाचार है। 10 समय पर अपना कार्य पूरा करना  11 दिनचर्या को समयानुसार संचालित करना  12 पढाई खेल-कूद (क्रीड़ा) कला सबको समय देना सबमें मेहनत करना , ही  परम आचार -शिष्टचार है  13  कुछ नियम सिख लिए , कुछ नियम सिख रहा  और सारे नियम सीखना है मुझे   14  खुद पर लागू कर आगे बढ़ना है मुझे 15  निरंतर प्रयास मुझे करते रहना है क्य...

ताल की गूँज

ताल  की गूँज में कुछ तो बात है कहता वो हज़ार लव्ज़ गिनती की थपकियों में यूँ ही गिनती में अनगीनत कहानियाँ बस रही थी हर कहानी एक नया एहसास बयान कर रही   कानो को सुकून दिल को अपनी रूह दे रही  वो ताल ज़िन्दगी का गीत भी ताल पे ही मधुर लगेगा बेहिसाब एहसासों  को ब्यान करने का तभी  सुर लगेगा कोशिश करें क्योंकि काल अभी दूर है खुद ही समझ जाओगे की ताल की गूँज में कुछ तो बात है

तिरंगा

कपड़ा श्वेत सा ही था वो अब  जो केसरी हरे रंगो से मिल कर जी उठा तिरंगा है मेरा  वो अशोक चक्र संयम है और देश की शान तिरंगा  है मेरा वो मीलों तक बस रहे  इंसानो को हिन्दुस्तानी बनाता दूर सरहदों पे उन्ही हिंदुस्तानियों के लिए लहराता कपड़ा श्वेत सा ही था वो पर अब तिरंगा है मेरा वो रंग से राग  बन रहा वो देश का केसरी जूनून , हरा विकास , श्वेत शक्ति , नील प्रगति गूँज रही ये धरती , दौड़ रहा ये लहू देश का गौरव है वो जो कपड़ा श्वेत सा ही था वो पर अब तिरंगा है मेरा वो

हम इंसान हुए

इत्तिफ़ाक़   से हम  इंसान हुए  वरना इस ज़मीन आस्मां  हवाओं  या सागर के हिस्से  होते  और न  ये बंदिशे होती न ये इंसानी किस्से होते  बस अपने ही जश्न में मग्न यूँ ही बहते रहते  पर इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए  चलो कुछ इन हवाओं सा ही बहना सीख जाते  सागर सा रहना सीख जाते साहिल हो पर फिर भी ज़मीन की खोज न  रुके प्रयास न रुके  आस्मां की नियत को अपनाए  मस्त मगन रहता पर हर मौसम में हाज़िर भी रहता  खुद के लिए बहता पर चाँद सूरज को भी सजाए रखता  इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए पर जश्न में मग्न हम हो सकते , इस प्रकृति सा हम भी बह सकते 

तारीफें तरीके

मैंने  तो अम्बर को नीला सा विशाल पाया और उसने अपनी कोरी  आँखों  के बावजूद अम्बर को गले लगाया। वो बिन देखे  महसूस करता था और मैं बिन  महसूस किये बस देख रहा था फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था, एक  नज़रिए  से दूजे तक के   सफर  को  ही  जीवन कहते  शायद ! तारीफें अलग थी , तरीके भी। मुस्कुरा के महसूस करता वो हर पत्तियों को, मुझे लगती वो पत्तियां गहरी हरी सी संजीवनी। वो लहरों को सुन कर उनसे गुफ्तगू करता , उनकी तारीफें उन्ही से करता, मुझे तो लहरें  जैसे श्वेत अश्वों की सेना  लगती। हर दिशा में हर कण में कुछ अद्भुत ढून्ढ रहे थे, तारफिों के पूल बाँध रहे  थे , उस खुदा का शुक्रिया कर रहे थे। मैं  देख सकता था , और मेरा दोस्त नहीं  -  पर हम  दोनो  अपनी तारीफें अपने तरीकों से इन हवाओं में  घोल रहे थे   फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था, एक  नज़रिए  से दूजे तक के ...

बंजारे बादल

बंजारे बादल यूँही आस्मां से हो के गुज़र रहे थे किस्से कहानियाँ खुद में  समेटे गुज़र रहे थे गौर किया  तो खाली थे , कहानियों को पिछले मोड़ पे बरसा चुके उसी बरसात में पिछले मौसम में एक और कहानी बानी थी आज वो कहानी भी गुज़र गई बरस  गई ,खली हूँ मैं इन बादलों की तरह गुज़र रहा हूँ ज़िन्दगी से हो कर , हवाओं की  दिशा में बंजारे बादल आस्मां में और मैं इस ज़मीन पर है तलाश नई कहानियों की , नई बरसात की 

रिश्तों की उम्र

रिश्तों की उम्र नहीं होती , वो बूढ़े नहीं होते बस इंसान बूढा हो जाता है और समझ नहीं पाता की वो रिश्ते जो उसकी पहचान थे कब वही रिश्ते उससे अंजान हो गए हर रिश्ता अपने साथ एक ज़िन्दगी लाता है ज़िन्दगी बूढी नहीं होती , बस हम इंसान ज़िन्दा नहीं रहते कोशिश करे अगर हर इंसान - तो रिश्तों की उम्र नहीं होगी वो बूढ़े नहीं लगेंगे - ज़िंदा रहेंगे हम , ज़िंदा रहेंगे वो रिश्ते

आतंक के विररुद्ध

धड़कने  तेज़ होने लगती है ,क्लेश जब होता है दिल मायूस हो उठता है , खून जब बेहता  है पर न बने कमज़ोर न मजबूर क्यूंकि अन्धकार में है वो जो आतंक  को हथियार बनाए अधिकार है हमे की  हम उस आतंक को ठुकराए न खुदा  न कोई दूजा करेगा  तय विश्वास खुद  पर ही कर बढ़ना आगे न आतंक न भय , होगी  शान्ति की जय हर कदम के साथ बनता चल तू निर्भय रह कर  अकेला कोई न  जीत पाया  है हाथों  से  हाथों को मिल कर ही  वो  आतंक  देश  बन पाया है हो एहसास  ये जब हमे एक जूट होगा हर इंसान आतंक के विरुद्ध अकेला रह जायेगा वो आतंक देश मजबूत होगा इंसान ,गूंजेगी इंसानियत की लय हर कदम के साथ एक होते चलें हम विश्वास खुद  पर कर, आगे  बढ़ते  चलें हम जब होगा हर इंसान आंतक के विरुद्ध सोच सकेगा न कुछ और तू -  न हार  न पराजय न आतंक न भय , तब होगी  शान्ति की जय

अनगिनत लम्हें

अनगिनत लम्हें है इंतज़ार में बीत गए लम्हे  वो जो बीत गए नए लम्हों को नए ढंग  से जीना बासी हो चुके वो जो लम्हे उन्हें न छूना मचले का दिल उन लम्हों को दोहराने को फर्क क्या रह जायेगा फिर , रुक सा जायेगा जैसे चलता हुआ मुसाफिर न बदलेगा समां , न लम्हों को जीने का ढंग खुशियां भी गणित सी मालूम होने लगेंगी दो दूनी चार के  हिसाब सी हो जाएँगी रहने दो खुशियों  को अनन्त सी बेहिसाब ही अनगिनत  लम्हे है इंतज़ार में नए लम्हों को नए ढंग से जीना ही है सही

हमारी लाडली

जश्न की गठरी अपने नन्हे हाथो में मेरे आँगन  की रौशनी अपनी किलकारियों में समेटे जब तू आई  - नमन हुआ मैं उस क्षण से कहता रहा , कहता हूँ हर बार तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार न जाने जग को क्यों तुझ में अँधेरा दिखे  मेरे लिए तू इस जग का  रोशन सवेरा संग लाई अपनी कहानी कुछ यूँ लिखेगी अपने भैय्या को पीछे छोड़ देगी वो भी गर्व से कह उठेगा ,जो लड़ता था तुझ से हर  बार  तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार मेरी बेटी बनकर ,रिश्तों में रंग भर कर तूने समझया- तू न  हो तो माँ न हो, ये जग न हो  तुने वो शक्ति है पाई - नमन हुआ मैं   उस क्षण से कहता रहा , कहता हूँ हर बार तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार 

salaam-e-shukran

ज़िन्दगी  बीत जाती है ज़िन्दगी को  समझने में रह जाती है यादें अगर जी  हो ये ज़िन्दगी हमने  वक़्त के साथियों  को देखो ज़रा  रात की करवट  सुबह  लाती है  बरसात की फुहार बहार  लाती है   और हम वही उलझे रह जाते - कुछ  गिलो कुछ  शिकवों  को दिल से  लगाए  न कभी करवट लेते  रात की तरह ,न बहते बारिश की  तरह  आज  कुछ ऐसा करें की खुद की धड़कने  मुस्कुरा उठे  गिलों  शिकवो के जालों को साफ करें, सालम-ए -शुक्रन से सबको  माफ़ करें