अनगिनत लम्हें
अनगिनत लम्हें है इंतज़ार में
बीत गए लम्हे वो जो बीत गए
नए लम्हों को नए ढंग से जीना
बासी हो चुके वो जो लम्हे उन्हें न छूना
मचले का दिल उन लम्हों को दोहराने को
फर्क क्या रह जायेगा फिर ,
रुक सा जायेगा जैसे चलता हुआ मुसाफिर
न बदलेगा समां , न लम्हों को जीने का ढंग
खुशियां भी गणित सी मालूम होने लगेंगी
दो दूनी चार के हिसाब सी हो जाएँगी
रहने दो खुशियों को अनन्त सी बेहिसाब ही
अनगिनत लम्हे है इंतज़ार में
नए लम्हों को नए ढंग से जीना ही है सही
बीत गए लम्हे वो जो बीत गए
नए लम्हों को नए ढंग से जीना
बासी हो चुके वो जो लम्हे उन्हें न छूना
मचले का दिल उन लम्हों को दोहराने को
फर्क क्या रह जायेगा फिर ,
रुक सा जायेगा जैसे चलता हुआ मुसाफिर
न बदलेगा समां , न लम्हों को जीने का ढंग
खुशियां भी गणित सी मालूम होने लगेंगी
दो दूनी चार के हिसाब सी हो जाएँगी
रहने दो खुशियों को अनन्त सी बेहिसाब ही
अनगिनत लम्हे है इंतज़ार में
नए लम्हों को नए ढंग से जीना ही है सही
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