नमन
वो तारों की चमकती चादर मेरे आस्मां को चमका रही थी
मेरी सोच ही उस आस्मां को मेरा बना रही थी
वरना तो वो बादलों के बंजारे टोपे बेफिक्री में उड़ रहे थे
चारों दिशाओं की गूँज थी
पर वो मेरी शान्ति ही थी जो उस गूँज को पहचान दे रही थी
पर वो मेरी शान्ति ही थी जो उस गूँज को पहचान दे रही थी
वरना तो अदृश्य सी हवाओं की धारा बह रही थी
मुस्कुरा कर नमन है उस रचियता को
बरस रही जिसकी कृपा हर पल है ,
मेरी सोच ही इस वक़्त को पल बना रही
वरना तो सूरज डूबा रोज़ ही करता है और वक़्त यूँही बीत जाता
मेरी सोच ही इस वक़्त को पल बना रही
वरना तो सूरज डूबा रोज़ ही करता है और वक़्त यूँही बीत जाता
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