तारीफें तरीके

मैंने  तो अम्बर को नीला सा विशाल पाया
और उसने अपनी कोरी  आँखों  के बावजूद अम्बर को गले लगाया।
वो बिन देखे  महसूस करता था और मैं बिन  महसूस किये बस देख रहा था
फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था,
एक  नज़रिए  से दूजे तक के   सफर  को  ही  जीवन कहते  शायद !
तारीफें अलग थी , तरीके भी।
मुस्कुरा के महसूस करता वो हर पत्तियों को,
मुझे लगती वो पत्तियां गहरी हरी सी संजीवनी।
वो लहरों को सुन कर उनसे गुफ्तगू करता , उनकी तारीफें उन्ही से करता,
मुझे तो लहरें  जैसे श्वेत अश्वों की सेना  लगती।
हर दिशा में हर कण में कुछ अद्भुत ढून्ढ रहे थे,
तारफिों के पूल बाँध रहे  थे , उस खुदा का शुक्रिया कर रहे थे।
मैं  देख सकता था , और मेरा दोस्त नहीं  -  पर हम  दोनो  अपनी तारीफें अपने तरीकों से इन हवाओं में  घोल रहे थे  
फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था,
एक  नज़रिए  से दूजे तक के   सफर  को  ही  जीवन कहते  शायद !
तारीफें अलग थी , तरीके भी,
पर तारीफ करने का एहसास सुकून भरा ,
और हम खुद  को भूल कर ये सुकून पाये  जाए रहे थे।






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