हम इंसान हुए
इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए
वरना इस ज़मीन आस्मां हवाओं या सागर के हिस्से होते
और न ये बंदिशे होती न ये इंसानी किस्से होते
बस अपने ही जश्न में मग्न यूँ ही बहते रहते
पर इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए
चलो कुछ इन हवाओं सा ही बहना सीख जाते
सागर सा रहना सीख जाते
साहिल हो पर फिर भी ज़मीन की खोज न रुके प्रयास न रुके
आस्मां की नियत को अपनाए
मस्त मगन रहता पर हर मौसम में हाज़िर भी रहता
खुद के लिए बहता पर चाँद सूरज को भी सजाए रखता
इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए
पर जश्न में मग्न हम हो सकते , इस प्रकृति सा हम भी बह सकते
वरना इस ज़मीन आस्मां हवाओं या सागर के हिस्से होते
और न ये बंदिशे होती न ये इंसानी किस्से होते
बस अपने ही जश्न में मग्न यूँ ही बहते रहते
पर इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए
चलो कुछ इन हवाओं सा ही बहना सीख जाते
सागर सा रहना सीख जाते
साहिल हो पर फिर भी ज़मीन की खोज न रुके प्रयास न रुके
आस्मां की नियत को अपनाए
मस्त मगन रहता पर हर मौसम में हाज़िर भी रहता
खुद के लिए बहता पर चाँद सूरज को भी सजाए रखता
इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए
पर जश्न में मग्न हम हो सकते , इस प्रकृति सा हम भी बह सकते
Comments
Post a Comment