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Zindagi ek peheli

ज़िन्दगी एक पहेली है सब कहते है यूँ कह के सब भूल जाते है, अगले ही पल इसे समझाना चाहते है और उलझनो  को गले लगाते है राहो पे अकेले चलना है और संग चल रहे काफिलों में भी डूबना है।। हर मोड़ नया रंग दिखा रह था   पर रंगो की चाहत खोने  लगी.. गम के वो पल आंसुओं के संग बहते नहीं खुशियो के लम्हे पलक झपकते पिघल जाते सूरज की रौशनी से ही दिन नया और सूरज से ही शाम नई  दिल को कोस  रहा हर  कोई पर इस दिल से ही तो ये ज़िन्दगी और इस दिल को हम समझाते ज़िन्दगी एक पहेली है पर कह के सब भूल जाते

zindagi abhi baaki hai

कुछ रातें चाँद बिना सजने लगी कुछ लम्हे  न चाहते हुए बी सच होने लगे कुछ चाहते पीछे छुट रही थी कुछ ख्वाहिशें खिलाफ हो रही थी  फिर एक नई  सुबह मैं जिन्गदी जागी है  कह रही मुझ से जिन्गदी अभी बाकी है  कुछ यादें लहरों सी  मचले पल पल  किनारों तक आ के बिखरे हर पल  रुला रही इस दिल को ये यादें  बेवफा हो रही थी हवाएं  भी एक पल में एक सदी समां रही थी  ये सदी काटे नहीं कट रही थी तभी एक नई सुबह में  जिन्गदी जागी है  कह रही मुझ से जिन्गदी अभी बाकी है  तारो के सेहर चला गया कोई  इंसानों की बस्ती को छोड़ अकेले रह गए हम अजीब था वो मोड़ अजनबी लगने लगा हर चेहरा फीका लगने लग हर रंग तभी एक नई रंग में सुबह जागी है  कह रही मुझ से जिन्गदी अभी बाकी है 

behisaab baatein

अनगिनत  चेहरे  है  आस  पास बेहिसाब बातें  हो   रही  आस  पास कुछ  दिल  को  छु  रही कुछ  दिल  को  चूब  रही काश  ये  बातें  ये  चेहरे  हवा  के  झोंके  होते... छु  के  गुज़र  जाते नज़र  न  आते ..दिल  को  यूँ  न  रुलाते.. कोई  इस  दिल  के  करीब  था कोई  अजनबी  था .. दो  बातें  हर चेहरा  कर  रहा  था .. काश  ये  दो  बातें  दो  पल  से  होते .. रात  के  साथ  बीत  जाते दिल  को  यु  न  रुलाते... ज़िन्दगी  का गम  उनकी बातों  में   ढल  गया बातों का रंग मजाक   में  बदल  गया ... ना  किसी  को  दर्द  दिख  रहा  था ...न  ज़ख्म बस  बातें  कही  जा रही  थी .. काश  ये...

yaarian

बेफिक्र बेखबर हो रहे पल खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. हवाओं में घुल कर जिन्दगिया बदल रही घूम घूम कर सारे रास्ते नापते रहेते है संग कभी गिर कर कभी गिरा कर हाफ्ते रहते है संग फिर एक घेरा बना कर....मुट्ठिया यूँ खोलते मनो फिजाओं को आज़ाद हो हम करते खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. घोड़ो पे सवार रफ़्तार की रेस हर पल तू हारे मैं जीतूँ...जीत कर तुझ संग ही वो जीत मैं बाटूँ एक जोश बहता रहे युही , हो जब संग फुरसतो के लम्हे बिठाये  बिताये  बेफिक्र हो कर इशक जताए खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. बारिशो में वो ज़मीन पे पानी बारी बारी भीग कर फिर ब्यान करना अपनी ही जुबानी ठण्ड से ठितूर कर हवाओं से लड़ कर, करना मन मानी और मुट्ठिया यूँ खोलते मनो फिजाओं को आज़ाद हो हम करते खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही..

Jazbaat

जब जज्बातों को खेल समझने लगे कोई खुद को दो कदम दूर कर  लो उनसे.. वरना हर जज़्बात  की एक नई बिसात मिलेगी.. हर कदम पे मात मिलेगी... क्यूंकि वो खेल समझ रहे थे और हम इंसान बनने चले थे... अपना समझ कर ज़िन्दगी बाँटने चले थे... दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ.. उनकी तो परछाई भी झूठी थी.. हर पुकार बस एक गूँज थी... मतलबी रंग में डूबी.... क्यूंकि वो जज्बातों से जीतना चाहते थे और हम जज्बातों को जीना चाहते थे... अपना समझ कर ज़िन्दगी बांटने चले थे....... दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ.. उनके आगे बड़ जाने का... इस बात से बेफिक्र की कोई पीछे छुट रहा था.. वो नए साथी ढूंड रहे थे...नए खिलाडी...नए नकाब..नई  चाल पर जज़्बात तो दिल से निकलते है... फिर चाहे चहेरे  बदल जाएँ ... क्यूंकि इंसान का वजूद है ये जज़्बात और वो इस वजूद को झूठला रहे थे.. अपनी ज़िन्दगी में कितनो से टूटते जा रहे थे। दुआ है रब से अपने द्वार बुलाये उस इंसान को सिखला दे ज़िन्दगी के नियम जहाँ इंसानों से खेलने का हक सिर्फ उस रब को है इंसान को नहीं ...

Jab zindagi kho rhi thi

जब जब ज़िन्दगी गहेरे सन्नाटों  में खो रही थी.. जब जब शोर से डर लगने लगा था... आँख बंद कर के दिल के समंदर में छलांग लगाई..... तो पाया ज़िन्दगी मुझ में ही थी... बहार तो बस किनारे बस रहे थे.. बाहें खोल कर जब सागर को महसूस किया तो समझा लहरों की तरह जीना... कभी संग तिनका बहे...कभी मोती... कभी बेवजह यूँही... हर तरीके को मुट्ठी में ज़िन्दगी बना कर.. हवा के साथ कुछ यूँ छोडू की हर दिशा में ज़िन्दगी हो... ज़िन्दगी जीने के तरीके और संग संग वो रंग भी भिखरे जिन्हें सन्नाटों ने  फीके कर दिए थे... शोर में जो  रंग कही पीछे छुट गए थे।....

DO PAL

हम दो दिल है...दो बातें करने को.... दो पल ढून्ढ रहे ढेरों बातें होती यूँ तो...पर है जब रूबरू तो सोच रहे क्या कहूँ.. कह भी दूँ या चुप रहूँ...!!!! इन दो आँखों से दो दिल जुड़ रहे... दो हाथों के सहारे.. दो किनारे मुड़ रहे... चुप के से न जाने कब उसका रंग मुझ पे चड़ने लगा.. मेरी धडकनों की ओर बड़ने लगा।... दो रंग घुल रहे थे..एक असमान रंगने को...दो पल ढून्ढ रहे!!!! ढेरों रंग छलकाते यूँ तो...पर है जब रूबरू रंगों ने भी अकेला छोड़ दिया..और क्या कहूँ...!!! मुस्कुराहटों में कहानिया लिख रहे थे....... चलते चलते उन कहानियो को गुन गूना रहे थे... दो कदम चल के...दो कदम थम के....दो दिल मिल रहे थे!!! जादू हवाओं में कैसा हो रहा था।. बहते बहते गुदगुदा दे... असमान का जैसे कोई संदेसा दे.. हम जो न कह पाए वो हवाएं कहने लगी.. दो लव्ज़ कहने को...दो लव्ज़ सुनने को...दो पल ढून्ढ रहे!!!!!

Mang lun udhar

बेरंग पत्तों की आहट सुनी सुनी  सी लग रही थी वो टूट कर बिखर रहे थे शाखाओं से गिर के उड़ रहे थे ठोकर लगी ,होश संभाला तो पाया  वो वो पत्ते मेरी ज़िन्दगी  के आयेने है जो टूट कर बिखर रही थी..... फ़र्क सिर्फ इनता था मेरी ज़िन्दगी में  जान बाकि थी और उन पत्तों में  जूनून मुरझाये तो भी आंसू नहीं , मौसम की छाया में फिर खिलने की  चाह  नई मांग लूँ  उधार ये फितूर फिर हो मुश्किलें  चाहे  बेहिसाब पिघल जाएगी हर मुश्किल जल उठेगी अगर वो जूनून की आग !!!!! असमान की कोशिश थी सागर को नीले नकाब से वो  ढँक दे पर सागर की कोशिश थी की वो नकाबों में न ढले... ठोकर लगी होश समभाला तो पाया सागर की मुश्किलें मेरी ज़िन्दगी से कम  न  थी .... फर्क  सिर्फ इतना था मेरी ज़िन्दगी हार मान चुकी थी..और सागर की कोशिशो का अंत न था... लहरों में  खुद को बाँट कर..किनारों तक आने की कोशिश वो करता रहा... सदियाँ बिता दे...उस नीले नकाब को उतारने  की कोशिश में....पर न  थकत...

charcha hui

Inspired from songs like kajra re(BnB) ,chokra jawan re(ishqzade), pritam pyare(Rowdy Rathore) etc!! :) उसने चौक पे कुछ ऐसे मोहब्बत ज़ाहिर की... हम तो चुप रह गए.. मगर पूरे शहर ने चर्चा की...!!! ज़ालिम आशिक है...पर चुभन भी देता है... जैसे गुलाबों में कटा भी कोई रहता है.... चुभे तभी तो याद आता है.... और ये आशिक नाम का कटा इस दिल को सताता है... हम तो चुप रह गए....दर्द सह गए... मगर पूरे शहर ने चर्चा की.... कह ले मुझे कटा या कसूर तेरे दर्द का.. आशिक हूँ  तेरा, तेरी डांट में भी इश्क़ का रस ढूंड लूँ ज़माने की परवाह न करूँ तू भी मेरे इश्क में डूब जा अरे  जा  जा ज़ालिम  आशिक मेरे तेरी नियत न जाने कब बदल जाए..... नियत का पता नहीं  पर जो तू मेरे इश्क में  डूब जाये तेरी दिल्ली को महल बना दूं... चौक पे तेरे चाँद को ला दूं.. ज़माने की हवा भी बदल जाएगी अँखियों में  सुरमा जो  लगाएगी तो  चर्चा  फ़िल्मी सितारों सी होगी ... इस चौक पे क्या पूरे बम्बई  नगरिया म...

Paani ka Rang

पानी का रंग सोच के आँखें वो नम देख के... पानी का रंग सोच के तुझ में ही बहता मैं गया.... तुझ में ही बहता मैं गया.... नज़रों का ज़ोर या दिल का शोर था वो... दिल तो मेरा था पर तेरी ओर था वो.. नज़रों का ज़ोर या दिल का शोर था वो... दिल तो मेरा था पर तेरी ओर था वो.. इश्कों का ढंग सोच के..... इश्कों का ढंग सोच के..... तुझ से ही इश्क हो गया.... तुझ से ही इश्क हो गया.... अब जो तू है संग मेरे.. आसुंओं को   छोड़ दे.... अब जो तू है संग मेरे.. आसुंओं को छोड़ दे.... खुशियों के रंगों को थामें.. ये जहाँ तू रंग दे...!!!! खुशियों के रंगों को थामें.. ये जहाँ तू रंग दे...!!!! चंदा का रूप देख के.... अक्स तेरा महसूस कर के.... तेरा ही  मैं होता गया.... तुझ में ही बहता मैं गया.. तुझ में ही बहता मैं गया.. मौसम की अंगड़ाई दिल को छु रही.. धुप में ये बरखा यूँ खिल रही... कारी रातें भुला रही..भीगी बाँहों में बुला रही..ये बरखा आज... तू भी आ सब कुछ भूल के... तू भी आ सब कुछ भूल के... मुझ में ही खुद को ढून्ढ ले.....

aankhen

राज़-ऐ-दिल है कई इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं बयां कर देते वो हर बात... जिसके लिए जुबान ने किया था इंकार बेहिसाब एहसासों को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में कुछ  एहसास ख़ुशी के...कुछ गम के.. और कुछ राज़  बन कर ठहर गए इस दिल  में.. पर ये आँखें न सम्भलें,बयां करे राज़-ऐ-दिल कई.... काश  इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं ज़िन्दगी कुछ कहानियाँ बुन रही थी.. हर लम्हे  के लिए एक नया रंग चुन रही थी... उन लाखों रंगों की ख्वाहिश  को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में  कुछ रंग रंगीले से...कुछ फीके से रह रहे थे इस दिल में.. पर ये आँखें न  सम्भलें,छलका दे हर वो रंग.... काश इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं.... संग मेरे मेरा सनम भी था... वो रंग वो एहसास सारे देख रहा रंगीले से रंग और खुशियों के एहसास को वो भी जी रहा.. पर उन फीके रंगों के लिए... फिजाओं में उसकी फ़िक्र बहने लगी... इसी बहाने नज़दीकियाँ  बढ़ने  लगी...इश्क बढ़ने लगा... आँखों के शीशों को  छुपाने ...

Behta chal

मूक बन खड़ा क्या तक रहा रफ़्तार की भांप क्या नाप रहा रही है तू चालत चल नदी है तू बहत चल थम कर जम कर बहते पानी ने क्या पाया रही है तू चालत चल नदी है तू बहत चल।। जियन मरण तो लगा रहेगा,पर जीवन लय में तू न बहेगा अगर छुट जाएगी टूट जाएगी ये डोर न रुक न शुक इस लय में हर सुख हर दुःख इस लय में बहता चल न थम कहीं रफ़्तार से जीवन...जीवन की रीत यही। हर फूल हर कलि किरण आगे बढ़ रहे ऋतुओं की धरा में बदल रहे न थम रहे न जम रहे...इस जीवन की रफ़्तार में बढ़ रहे तू तो फिर भी मानव का रूप है पावन धरती पर जीवन का स्वरुप है फिर क्यूँ थक रहा..अपने आप से झिझक रहा?? खोल बाहें इस सफ़र में जी कर जीत जा ये जीवन दिल है तू धड़कता जा रौशनी है तू बहता जा कैद होकर उस रौशनी ने क्या पाया.. दिल है तू धड़कता जा रौशनी है तू बहता जा ।।

Ye Kahaniya

बस मैं नहीं दिल की बस्तियां मचल रही आँखों की कश्तियाँ लहरों की बाहों में है किनारे मेरी बाहों में तू आजा रे... मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ इश्क के मौसम की है ये  निशानियाँ तेरे संग बीताये वो बारिश के लम्हे भीगे आसमान तले...मुस्कुराते हम दो परिंदे.. आज भी उड़ता हूँ उन लम्हों को याद कर... जब बारिश की बूंदों  को हमने मोती बना दिया.... इश्क जाताना था सो आस्मां पे चाँद सजा दिया.... मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ इश्क के मौसम की ये है निशानियाँ हवा के झोकों  पे शहर न बसा तू.. इश्क की गलियों में मुझको न फसा तू.. बारिश में साथ घुमे तो इश्क कहाँ हुआ.... खुशिया संग बाट ली तो इश्क कहाँ हुआ... मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ... न तो इश्क है...ना ही इश्क के मौसम की निशानियाँ.. फूलों के तोफ्हे जो भी तुने दिए थे... फूल ही तो थे....ये सोच  के मैंने  लिए थे... चाँद को खुदा ने सजा रखा है...तुमने तो बस  यूँही कहा है.... खुशिया हर पल मिली तेरे संग...पर इश्क कहाँ हुआ... मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ... न...

wo makadi mashoor ho gai

मानो जैसे वो मकड़ी मशहूर हो गई.... मैं अपने जाल में फसा था....और वो अपना जाल बून रही थी..... मैं तन्हा बैठा था....वो अपने में मग्न थी..... खुछ इस तरह आकर्षित कर रही थी वो... जैसे पत्तो पे ओस की बुँदे न हो....हीरे हो वो.... मकड़ी न हो..ध्रुव सितारा हो वो..... मानो जैसे वो मकड़ी मशहूर हो गई.... मेरे लिए तो चार दिवारी थी और एक खिड़की का नज़ारा था... पर उस जान के लिए तो बस एक कोने का सहारा था... फिर भी आंसू थे आँखों में मेरे....और वो थी बेपरवाह सी... आँखों को छुपा लिया उसने कहीं..और अपने में मग्न थी.... मेरे दिमाग पे छा गई हो जैसे मानो वो मकड़ी मशहूर हो गई.... न खबर उसे अपनी चर्चा की..न गम उसे अपनी तन्हाई का... हर दम लगा कर जाल बून रही थी वो....अपने में मग्न थी वो.. न खोट किसी के लिए न नकाब किसी झूठे एहसास का... फिर भी गिरना लिखा है  खुदा ने हर कदम पे उसके... हम तो फिर भी इंसान है...  सो गिरेंगे तभी तो संभलेंगे..और यूँ तन्हा बैठ कर उस मकड़ी की जंग को जियेंगे जैसे मानो वो मकड़ी मशहूर हो गई!!!! बैठा था मैं यूँही.....

Shikto noyona

shikto noyona in bengali means bheegi bheegi aankhen.Now enjoy!!!!! कैसे ये लम्हे फिसल रहे न बस चल रहा न जोर.... तुझे रोक लूँ....बस एक चाहत है... तू जो मेरी राहत है.....तू हो संग मेरे.... पर अब संग मेरे, मेरे शिक्तो नोयोना. चाँद भी रूप बदल के आ रहा...आधा पिघला सा है....आधा खुद को छुपा रहा.... पर  है तो चाँद.. सो तारों संग असमान सजा रहा..... तू भी लौट आ..दिल तोह है वही..... मिल के सजा लेंगे अपना असमान.... बस ये  एक चाहत है.... तू जो मेरी राहत है...हो संग मेरे..... पर अब संग मेरे, मेरे शिक्तो नोयोना ।। मौसम भी लौटा गया इन फूलों को रंगों की सियाही.... लौट आई है फिजा परदेस हो कर.... पर मुझे मेरी मुस्कराहट का इंतज़ार है....ताक रहा दरवाजों पर.... ले के संग आएगी तू मेरी मुस्कुराहटें....... बस ये एक चाहत है.... तू जो मेरी राहत है...हो संग मेरे..... पर अब संग मेरे, मेरे शिक्तो नोयोना ।।

aasmani

वो पल जो उस अजनबी के संग हो... हलचल हो इस दिल में...बिखरे दिल रंग हो.... नीला असमान भी अलग लगे...अलग सा बहे ये पानी.. आसमानी आसमानी  वो पल था आसमानी... जल रहा था कोयला...आग मचल रही थी... धुआं धुआं सा हो रहा था...फिर भी अँखियों ने न मानी... बेक़रार होकर..रातों को जाग कर.... उस अजनबी को याद करने की ठानी... और महसूस कुछ ऐसा होने लगा..... आसमानी आसमानी  वो पल था आसमानी...   उड़ा दे असमान तक.....ज़मीन पर भी जन्नत दिखा दे.... हैरत हो सबको...और मुझे अजीब सा मज़ा दे.... गुदगुदाए होले से...कभी धडकनों को बढ़ाये.... सब उस पल की है मन मानी.... आसमानी आसमानी  वो पल था आसमानी... प्यार इश्क की बातें तो बहुत सुनी थी.... एहसार करने की बारी अपनी थी.... उलझे धागों सा था मन.... उस अजनबी का चढ़ रहा था रंग.... क्या कहूं...कसे कहूं....सब लग रहा बेमानी.....  पर   आसमानी आसमानी  वो पल था आसमानी...      

kabhi kabhi

कभी कभी ये असमान यूँ नीला लगे जैसे सागर की छत हो... कभी कभी ये सागर की लहरें यूँ लगें जैसे बादलों की करवट हो.... कभी कभी ये दिल धड़कने के लिए मचलता है.... कभी कभी मचलने के लिए धड़कता है...... और मैं बेबस खड़ा मुस्कुरा रहा था....खुद को गले लगा रहा था..... कभी कभी इन तितलियों के रंगों को समझू मैं.. कभी कभी उन्ही रंगों को जीवन  में तलाशू मैं..... कभी कभी इस रात की चादर में खुद को छुपा लू... और कभी  सूनी राहों में एक पल छाया मांग लू...... हर हरकत में कुछ सवाल थे....पर अकेला था दिल..सो धड़कता जा रहा था.... और मैं बेबस खड़ा मुस्कुरा रहा था...... कभी कभी एहसास हो प्यार का तो दिशाएं संग झूमे... और कभी  इन्ही  दिशाओं में गुम हो जाये दिल..... कभी कभी तन्हाईओं में सुकून मिले.. और कभी दिल पुकारे अपने सहारे को.... इस मन के हर रंग अजीब है.....कभी कभी यूँ सोच रहा था मैं.... साथ ही मुस्कुरा रहा था.....खुद को गले लगा रहा था......

Sooraj ke sang wo sham

उस दिन का सूरज न जाने डूबते डूबते क्या कह गया..... इन सासों को धडकनों से उलझा गया.... बहका सा ये मन बिखर सा गया.. न जाने वो डूबता सूरज क्या कह गया.. हर नब्स की जान भी थक चुकी थी... तूफ़ान से लड़ रहे हो कुछ यूँ मेरी धड़कने चल रही थी... कुछ सोचता था ये मन....कुछ कहता न.... हर बात में नया सा बहाना ढूँढता रहता.. बस यूँही उदास था मैं...कुछ सोच कर.. तलाशता रहा मैं कुछ जवाब.. सवालों की शक्ल भी धुंदली सी थी.... बेचैन सा मन न जाने क्या सह रहा था... हर घडी अलग दिशा में बह रहा था.. पर न जाने क्यूँ ऐसा लगा... वो डूबता सूरज कुछ कह रहा था.... अपने ही ख्याल पर फिर हस पड़ा मैं..... अपनी उलझनों के लिए सूरज को कोस रहा था... बेवजह सूरज की ख़ामोशी को लव्ज़ों मैं तोल रहा था.. अजीब है मन...ये है दिल...ये धड़कन.. या वो लम्हा अजीब था...जब बूझ रहा था सूरज सागर की लहरों से.... खूबसूरत था मंज़र कहते है लोग... पर मेरा जहाँ शायद इस बूझते सूरज को देख कर उदास था... शायद .....शायद पर ही वो शाम ढल गई.... उस दिन का सूरज न जाने डूबते डूबते क्या कह गया.....

Muskan

हर मुस्कान के दो माईने है... कभी वो ख़ुशी कभी गम के आईने है.. जो पहचानो तुम इस नकाब को.. समझो कलाकार हो तुम....... खो गए इनकी परछाइयो में कहीं.... समझो नादान हो तुम... हर  वो दिल जो अज़ीज़ है करता है यूँ कभी कभी..... ख़ुशी तो संग बाट लेता...पर दर्द को छुपाता है...  जो महसूस करो तुम इस एहसास को.... समझो आशिक  हो तुम.... अगर न समझे ये  माईने.... तो ज़िन्दगी को  समझना बाकि है.... ये जान लो तुम..... आस्मां भी तारों की कहानी छुपाता है... सूरज की बाहों में बेदाग मुस्कुराता है..... हर ज़र्रे के दो एहसास होते है.... कभी वो ख़ुशी कभी वो गम के पास होते है.... मुस्कुरा कर हमने भी दर्द छुपा लिए.... दुआ है इस दिल की...जब भी मिलो हमसे... इस नकाब को पहचान लो तुम....!!!