Behta chal

मूक बन खड़ा क्या तक रहा
रफ़्तार की भांप क्या नाप रहा
रही है तू चालत चल
नदी है तू बहत चल
थम कर जम कर बहते पानी ने क्या पाया
रही है तू चालत चल
नदी है तू बहत चल।।

जियन मरण तो लगा रहेगा,पर
जीवन लय में तू न बहेगा अगर
छुट जाएगी टूट जाएगी ये डोर
न रुक न शुक इस लय में
हर सुख हर दुःख इस लय में
बहता चल न थम कहीं
रफ़्तार से जीवन...जीवन की रीत यही।


हर फूल हर कलि किरण आगे बढ़ रहे
ऋतुओं की धरा में बदल रहे
न थम रहे न जम रहे...इस जीवन की रफ़्तार में बढ़ रहे
तू तो फिर भी मानव का रूप है
पावन धरती पर जीवन का स्वरुप है
फिर क्यूँ थक रहा..अपने आप से झिझक रहा??
खोल बाहें इस सफ़र में
जी कर जीत जा ये जीवन
दिल है तू धड़कता जा
रौशनी है तू बहता जा
कैद होकर उस रौशनी ने क्या पाया..
दिल है तू धड़कता जा
रौशनी है तू बहता जा ।।

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