Ye Kahaniya

बस मैं नहीं दिल की बस्तियां
मचल रही आँखों की कश्तियाँ
लहरों की बाहों में है किनारे
मेरी बाहों में तू आजा रे...
मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ
इश्क के मौसम की है ये  निशानियाँ

तेरे संग बीताये वो बारिश के लम्हे
भीगे आसमान तले...मुस्कुराते हम दो परिंदे..
आज भी उड़ता हूँ उन लम्हों को याद कर...
जब बारिश की बूंदों  को हमने मोती बना दिया....
इश्क जाताना था सो आस्मां पे चाँद सजा दिया....
मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ
इश्क के मौसम की ये है निशानियाँ

हवा के झोकों  पे शहर न बसा तू..
इश्क की गलियों में मुझको न फसा तू..
बारिश में साथ घुमे तो इश्क कहाँ हुआ....
खुशिया संग बाट ली तो इश्क कहाँ हुआ...
मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ...
न तो इश्क है...ना ही इश्क के मौसम की निशानियाँ..

फूलों के तोफ्हे जो भी तुने दिए थे...
फूल ही तो थे....ये सोच  के मैंने  लिए थे...
चाँद को खुदा ने सजा रखा है...तुमने तो बस  यूँही कहा है....
खुशिया हर पल मिली तेरे संग...पर इश्क कहाँ हुआ...
मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ...
न तो इश्क है...ना ही इश्क के मौसम की निशानियाँ..



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