Jab zindagi kho rhi thi
जब जब ज़िन्दगी गहेरे सन्नाटों में खो रही थी..
जब जब शोर से डर लगने लगा था...
आँख बंद कर के दिल के समंदर में छलांग लगाई.....
तो पाया ज़िन्दगी मुझ में ही थी...
बहार तो बस किनारे बस रहे थे..
बाहें खोल कर जब सागर को महसूस किया
तो समझा लहरों की तरह जीना...
कभी संग तिनका बहे...कभी मोती...
कभी बेवजह यूँही...
हर तरीके को मुट्ठी में ज़िन्दगी बना कर..
हवा के साथ कुछ यूँ छोडू की
हर दिशा में ज़िन्दगी हो...
ज़िन्दगी जीने के तरीके
और संग संग वो रंग भी भिखरे
जिन्हें सन्नाटों ने फीके कर दिए थे...
शोर में जो रंग कही पीछे छुट गए थे।....
जब जब शोर से डर लगने लगा था...
आँख बंद कर के दिल के समंदर में छलांग लगाई.....
तो पाया ज़िन्दगी मुझ में ही थी...
बहार तो बस किनारे बस रहे थे..
बाहें खोल कर जब सागर को महसूस किया
तो समझा लहरों की तरह जीना...
कभी संग तिनका बहे...कभी मोती...
कभी बेवजह यूँही...
हर तरीके को मुट्ठी में ज़िन्दगी बना कर..
हवा के साथ कुछ यूँ छोडू की
हर दिशा में ज़िन्दगी हो...
ज़िन्दगी जीने के तरीके
और संग संग वो रंग भी भिखरे
जिन्हें सन्नाटों ने फीके कर दिए थे...
शोर में जो रंग कही पीछे छुट गए थे।....
jab jindagi kho rahi hi tb bs andar k aawaj hi sunani chahie...;-p
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