Jazbaat

जब जज्बातों को खेल समझने लगे कोई
खुद को दो कदम दूर कर  लो उनसे..
वरना हर जज़्बात  की एक नई बिसात मिलेगी..
हर कदम पे मात मिलेगी...
क्यूंकि वो खेल समझ रहे थे और
हम इंसान बनने चले थे...
अपना समझ कर ज़िन्दगी बाँटने चले थे...

दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ..
उनकी तो परछाई भी झूठी थी..
हर पुकार बस एक गूँज थी...
मतलबी रंग में डूबी....
क्यूंकि वो जज्बातों से जीतना चाहते थे और
हम जज्बातों को जीना चाहते थे...
अपना समझ कर ज़िन्दगी बांटने चले थे.......

दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ..
उनके आगे बड़ जाने का...
इस बात से बेफिक्र की कोई पीछे छुट रहा था..
वो नए साथी ढूंड रहे थे...नए खिलाडी...नए नकाब..नई  चाल
पर जज़्बात तो दिल से निकलते है...
फिर चाहे चहेरे  बदल जाएँ ...
क्यूंकि इंसान का वजूद है ये जज़्बात
और वो इस वजूद को झूठला रहे थे..
अपनी ज़िन्दगी में कितनो से टूटते जा रहे थे।

दुआ है रब से अपने द्वार बुलाये उस इंसान को
सिखला दे ज़िन्दगी के नियम
जहाँ इंसानों से खेलने का हक सिर्फ उस रब को है इंसान को नहीं

Comments

  1. naai sochne ka re baaba itna...
    wo hai upar baith k sab dekh ra...
    he will do d deedful...;)

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