Sooraj ke sang wo sham
उस दिन का सूरज न जाने डूबते डूबते क्या कह गया.....
इन सासों को धडकनों से उलझा गया....
बहका सा ये मन बिखर सा गया..
न जाने वो डूबता सूरज क्या कह गया..
हर नब्स की जान भी थक चुकी थी...
तूफ़ान से लड़ रहे हो कुछ यूँ मेरी धड़कने चल रही थी...
कुछ सोचता था ये मन....कुछ कहता न....
हर बात में नया सा बहाना ढूँढता रहता..
बस यूँही उदास था मैं...कुछ सोच कर..
तलाशता रहा मैं कुछ जवाब..
सवालों की शक्ल भी धुंदली सी थी....
बेचैन सा मन न जाने क्या सह रहा था...
हर घडी अलग दिशा में बह रहा था..
पर न जाने क्यूँ ऐसा लगा...
वो डूबता सूरज कुछ कह रहा था....
अपने ही ख्याल पर फिर हस पड़ा मैं.....
अपनी उलझनों के लिए सूरज को कोस रहा था...
बेवजह सूरज की ख़ामोशी को लव्ज़ों मैं तोल रहा था..
अजीब है मन...ये है दिल...ये धड़कन..
या वो लम्हा अजीब था...जब
बूझ रहा था सूरज सागर की लहरों से....
खूबसूरत था मंज़र कहते है लोग...
पर मेरा जहाँ शायद इस बूझते सूरज को देख कर उदास था...
शायद .....शायद पर ही वो शाम ढल गई....
उस दिन का सूरज न जाने डूबते डूबते क्या कह गया.....
इन सासों को धडकनों से उलझा गया....
बहका सा ये मन बिखर सा गया..
न जाने वो डूबता सूरज क्या कह गया..
हर नब्स की जान भी थक चुकी थी...
तूफ़ान से लड़ रहे हो कुछ यूँ मेरी धड़कने चल रही थी...
कुछ सोचता था ये मन....कुछ कहता न....
हर बात में नया सा बहाना ढूँढता रहता..
बस यूँही उदास था मैं...कुछ सोच कर..
तलाशता रहा मैं कुछ जवाब..
सवालों की शक्ल भी धुंदली सी थी....
बेचैन सा मन न जाने क्या सह रहा था...
हर घडी अलग दिशा में बह रहा था..
पर न जाने क्यूँ ऐसा लगा...
वो डूबता सूरज कुछ कह रहा था....
अपने ही ख्याल पर फिर हस पड़ा मैं.....
अपनी उलझनों के लिए सूरज को कोस रहा था...
बेवजह सूरज की ख़ामोशी को लव्ज़ों मैं तोल रहा था..
अजीब है मन...ये है दिल...ये धड़कन..
या वो लम्हा अजीब था...जब
बूझ रहा था सूरज सागर की लहरों से....
खूबसूरत था मंज़र कहते है लोग...
पर मेरा जहाँ शायद इस बूझते सूरज को देख कर उदास था...
शायद .....शायद पर ही वो शाम ढल गई....
उस दिन का सूरज न जाने डूबते डूबते क्या कह गया.....
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