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Showing posts from 2013

ऊन से रिश्ते

उलझे ऊन के गुच्छे मुझे याद दिलाते है मेरे रिश्तों की जिन्हे बुनने कि कोशिश करता आ रहा हूँ एक गाँठ खुलती , एक खुद-ब-खुद उलझ जाती। दादी का वो आँगन में बैठ गुठनो को  सजा कर ऊन को  सुलझाना याद आता है दादी ने सुलझा दी  ऊनी गठाने रिश्तों को  न संभाल पा रहा कोई  दो पल फुर्सत के मिले तो किसी आँगन में बैठ रिश्तों कि सारी गाँठें  सुलझा ले !!!!

ज़िन्दगी से मिला हूँ आज अपनी

मिला हूँ आज अपनी ज़िन्दगी से संग हज़ार बातें मिल गई। चाँद सज गया रात सज गई, पर न जाने रात की अंगड़ाई कब टूट गई ज़िन्दगी न जाने कब हमसे रूठ गई। और सारे चमकीले पल तारो से सुबह के आस्मां में - सफ़ेद सागर में  डूब गए पर ज़िन्दगी को जानना अभी बाकी है हज़ारों बातें अभी बाकी है बातों बातों में बताया इस ज़िन्दगी ने - रूठी नहीं हूँ बस थोड़ी सी जुदा हूँ तुमसे तारो को डूबा दिया कह रहे सूरज को जगा  दिया न देख रहे तब लगा ज़िन्दगी को  जानना अभी बाकी है हज़ारों  बातें  अभी बाकी है !!!

तनहाई

चलते चलते जहाँ  ये बदल गया ज़मीन थी  खाई बन  गई, महफिलें तनहाई बन गई। पर अभी भी धड़कने चल रही, अकेले में  ही सिसक रही और ढून्ढ रही एक किनारा एक पल जिन्दगी से भरा। रोशनी चमक रही थी  चारों तरफ , चेहरे  भी न देख पा रहा था। ऑंखें बंद कर लूँ तो अपने भगवान को भी ना याद कर पा  रहा था। कैसा ये तनहाई का शहर ! चलते चलते ये शहर बदल गया , तनहाई आदतों  में  बदल  गई बेचैनियाँ नशे में बदल गई।   आज भी वही दिल हुँ पर तनहाई के रेगिस्तान में खोया एक किनारा मिल जाये सारे रंग फिर से बदल जाए।।

काश

माँ की कोख से निकलते ही लाल लहू से लिप्त, मेरे नंगे बदन को  हॉस्पिटल की नर्स से श्वेत कपडे से लपेटा और मेरी  माँ की गोद में रख दिया। मेरे नंगे बदन को पहला रिश्ता मिला -  नर्स  का दिया हुआ वो पहला श्वेत कपडा।समय के साथ  कपडे  के रंग  बदले , रिश्ते जुड़ते गए और खुशियाँ बढती गई। किसे पता था की उन कपड़ो के  धागे  मुझे बांध रहे थे।हर धागे से एक रिश्ता बंधता जा रहा था और आज जब मेरी साँसे थक चुकी है, हर रिश्ता - हर धागा मुझे जाने से रोक रहा।आसूँ  भी इन  धागों को-जो दिख तो नहीं  रहे पर  मुझ से बंधे है- तोड़ न पा रहे। काश बिना रिश्तों के जैसे आये थे वैसे ही जा सकते।काश जैसे आते हुए सिर्फ  मैं रोया था जाते वक़्त भी सिर्फ मैं ही रोऊँ। काश ये बिछडन  का दर्द सिर्फ मुझे हो, मेरे कमाए हुए रिश्तों और उनसे जुड़े लोगो का न हो।

मैं कौन हूँ ??

मैं कौन हूँ दिलों के किनारों पे रहता भावनाओं के सागर में बहता हूँ  सागर हूँ या रेत हूँ मैं कौन हूँ ?? ज़मीन से उठ कर,तारो में  रहने को बेताब रहता हवाओं में  घुलने को बेताब रहता मैं कौन हूँ?? जिंदा हूँ कहते कुछ लोग इंसान हूँ कहते बाकी खोज रहा हूँ खुद को जवाब भी खुद को ही दूँ दर्पण में  दिख रही छाया हूँ या अपनी छाया का  दर्पण - अपना कर्म हूँ मैं कौन हूँ ?? असमान की चादर सा विशाल हूँ मौसम की चाल सा बेईमान हूँ या अपने ही दिल में  एक अभिमान हूँ मैं कौन हूँ ?? मैं कौन हूँ ??

मैं ये करूँगा वो करूँगा

मैं ये करूँगा वो करूँगा हवाओं को मोडूँगा असमान  को तोडूंगा टूटेगा बादल, बिखरेगी  बरखा तब ही तो मानेगा जश्न जश्न की जान बनूँगा, मैं ये करूँगा वो करूँगा।। दीवारों पे तारीखें लिख लिख के गिनी है खाली बस्ता तैयार रखा है सारे अरमानों को पूरा करूँगा सुनाई दे रही वो सिक्कों की खनक आये नहीं जेबों में जो अब तक पर फिर भी सोचा है वो करूँगा ये करूँगा।। दो पैसे कम तो  करो पूरी रात खरीदूँगा संग होंगे सब, संग होगा मेरा रब तब ही तो मानेगा जश्न जश्न की जान बनूँगा मैं ये करूँगा वो करूँगा।।

मन की गठरी

मन की  गठरी लिए साँझ  सवेरे कल की बातें यादें संग लिए इक्कठा की  है कुछ बातें कुछ  दिलासे कुछ डर की गाँठे ,कुछ  उम्मीदों के धागे सब  बंद है इस मन की गठरी में हवाएं रुके तो  खोलूँगा सोचा है वरना सब बह जायेगा सुकून रह जयेगा पर वो सुकून भरी रात से भाग रहा बेवजह ये गठरी को लाद रहा इक्कठा कर मुस्कुराहटें , मीठी यादें न डर की गाँठे न दिलासे खोलेगा जब जब ये गठरी मेहेकी मुस्कुराहटें हवाएँ चलेंगी फैलेंगी मुस्कुराहटें चल पड़ेगा फिर से तू बादलों के शहर की डगर पर मिलेंगे फिर कहीं किसी मोड़ पर नए दिलासे नया डर मत घबराना तू  ,मासूम सा मन  है माटी  का तू तेरा तन  है मत घबराना तू  , मासूम सा ये मन है।

Dekhi hai kya !!

ppl get fascinated to glitz n glamour of metro cities brands showrooms n some could handle it some dont some achieve their dreams midst such distraction some find love pateners (another distraction ) some could balance between personal n professional some find a way of escapism for their failure......and saga continues....!!!! देखी है क्या ! चाँद तारों की चमकती सी बरात, देखो  जैसे लग रही हो कोई रात एक गली थी,  दो कदम के फासले चाँद दूल्हा बना  चमक रहा था, मेरा ख्वाब लिए चमक रहा  था चल पड़े चाँद को जेब में भरने दो कदम  से लग  रहे थे  ये रौशनी के झरने देखी  है क्या ! चाँद तारों की चमकती सी बारात देखी  है क्या ! अपने ही सपनो की परछाई ज़िन्दगी थी जो कभी, संग थी जो अभी अभी सपने खो गए परछाई भी, ये गलियाँ\निगल रही तूझे भी\ दो कदम से लग रहे थे जो ये रौशनी के झरने देखी  है क्या !इनमें अपने ही  सपनो की परछाई देखी  है क्या ! अपने ख्वाबो को जाती डगर देखा था जो चौराहे पे खड़े हो कर एक ...

Dhoka

सूरज संग दिन चढ़े , वक़्त का कांटा आगे बढे मिलेगा नए चेहरों से , न मिल पायेगा खुद से ये जान ले तू ...... तू ही खुद का है बाकी सब धोखा  है सब धोखा है धूमिल से जो बन रही थी एक तस्वीर तुझे लग रही थी वो अपनी  हीर बेकाबू हो बांहों मैं भरने को चल पड़ा और पाया खुद तनहा खड़ा ये जान ले तु…. तू ही खुद का है बाकी सब धोखा  है सब धोखा है मुस्कुराते मुखौटों  के दिल न होते तू भी संग मुस्कुरा , पर  दिल न ढूँढ सच है बस ये आस्मां ये हवाओं का झोंका ये जान ले तु…तू ही  खुद का है बाकी सब धोखा है सब धोखा है…

piya ji more

[beautiful monsoon for stressed lover] बदल रहा बादल का  रूप काले से हो चले ये बादल पिया जी मोरे और अब  संग ये बादल  न जाने किस बात पर रूठ रहे बरखा बरस के ज़मीन पे बिखर रही मैं खिड़की पर बैठे बैठे, आंसूओं  की आहट न हुई धीमे से बहने  लगे न जाने किस बात पर रूठ  रहे पिया मोरे , न जाने किस मोड़ पे छूट रहे दो पल फुर्सत न खोज पा रही अपने ही पिया से हिचकिचा रही बूँदों सी हो चली मेरी कहानी बनती बिखरती,कभी ठहरती कभी बहता पानी न जाने किस बात पर रूठ  रहे पिया मोरे , न जाने किस मोड़ पे छूट रहे बदल रहा बादल का  रूप काले से हो चले ये बादल पिया जी मोरे और अब  संग ये बादल  न जाने किस बात पर रूठ रहे 

Dil hun dhadakta hun

दिखे  जो  हस्ता हुआ - है दिल का एक कोना न दिखे वो जो - है रोना लाखों पलों की निशानियाँ कुछ ख़ास दिलों की कहानियाँ सब बस रही इस दिल में बस ये दिल नहीं अब बस में रोक लूँ खुद को या बह जाने दूँ सारी कहानियाँ कह जाने दूँ और इस दिल को एक ज़िन्दगी जी जाने दूँ।। दिल भर आता है,  आँखों में आंसू ठहर जाते आँखों में ख्वाब है आसुंओं को न रख पाते बह जाने देते यूँही जिंदा हूँ मैं हस्ता  हूँ रोता हूँ दिल हूँ  धड़कता हूँ नई धुप में चल पड़ा हूँ खुशियों का जश्न मानते गमों को पीछे छोड़ते यूँही जिंदा हूँ मैं हस्ता  हूँ रोता हूँ दिल हूँ  धड़कता हूँ

Khushiyon ki zameen

खुशियों की न ज़मीन होती  न आसमान होने को एक पल में  हवा हो जाती रहने को संग सदियाँ बिता देती खुशियों की न ज़मीन होती न आसमान बस इस दिल से निकलती इस दिल से होती ये जवान गहरे सागर से मोती चुन लो या बारिश के बसरते  पानी से ओले हर दिल अपनी ख़ुशी चुनता है बेफिक्र के गुब्बारों से हवाओं में उड़ता है न ज़मीन देखता न असमान बस यूँ ही खुशियों से भरी ज़िन्दगी जीने की चाहत करता है और वो ये जनता है खुशियों की न ज़मीन होती न असमान बस इस दिल से निकलती इस दिल से ही होती ये जवान

wo 30 din wahi

मैं हूँ यही पर अब आस्मां वो नहीं कैलेंडर के वो ३०  दिन वही पर ऋतू  है नई ज़िन्दगी जो जी थी यादें बन गई पर कैलेंडर के वो ३०  दिन वही आजकल बस इतवार को फुर्सत रहती है बाकी वारों में खुद को संवारते थोड़े पैसे कमाते कैलेंडर की ओर देख के मुस्कुराते और कहते हम है यही पर अब वो समां नहीं कैलेंडर के वो ३० दिन वही , पर ऋतू है नई वो दिन जब दिन गिनना आदत न थी खुली फिजाओं सा बहना एक  राहत थी  होती थी दिन दोपहरी शाम बेहिसाब मस्तियाँ  ज़िन्दगी जो जी अब वो यादें बन गई कैलेंडर के वो ३०  दिन वही,पर ऋतू है नई

ishq ko jane bina

इश्क में डूबने को मचल रहा  है दिल पर इश्क होता है क्या ,ये सोच सोच के शाम और  सावरे की धुप में पिघल रहा है दिल हर मोड़ पर प्रेम पंछी  टकरा रहे जिससे पूछो "सच है ये प्रेम" का डंका बजा रहे प्रेम के चेहरे  हर घड़ी  बदल रहे एक का साथ छुटा दूजे के संग निकल पड़े पर जिससे पूछो "सच है ये प्रेम" का डंका बजा रहे उम्र की रफ़्तार से घबरा कर इसी पल में इश्क को पा कर कह कह कर इश्क जताने वाले भी मिले वो बेखबर सोचे इश्क की उम्र यही होती कैसा ये इश्क होता कैसी उसकी छाव होती और ये दिल बेचारा पिघलता रहा धुप ढलती  रही पर फिर भी दिल की धड़कने धड़कती रही इश्क को जाने बिना इश्क में डूबने को मचलती रही

lamhe

रात के वो लम्हे आज भी याद है जब चाँद को भी होश न था बेखबर था सारा आस्मां बेखबर थी हर धड़कन यूँही किनारों पे बैठे  रात ढल गई लहरों से लहरें मिल गई हम दो दिल बेखबर थे तारों की चादर ओढ़े एक हुए जा रहे थे एक दूजे में घुलते जा रहे दो दिल आज भी याद है वो फिजाओं का यूँ छु के गुज़रना सारे ख्यालों को संग बहा ले जाना हम दो दिल बेखबर थे एक अलग आस्मां बुन रहे थे बिना कुछ कहे एक दूजे को सून रहे थे ख्वाबों को नहीं अपनी मोहब्बत को जी रहे थे रात के वो लम्हे आज भी याद है साथ बीताये वो लम्हे आज भी याद है

OJAS

हम थे यहीं बस बिखरे थे जैसे आस्मां में तारे अब जो संग है तो जश्न मना रहे सारे फीका लगने लगे अस्मा पे वो सूरज हर दिशा गा रही ये गीत रस हम में है ओजस हम से ये कारवां देखी कहाँ दुनिया तूने देखा एक नया जहाँ ओजस  हम में है ओजस  हम से ये कारवां  रंग दे अपने आसमान  को सजेंगे रंग इतने  यहाँ अपने रंग  को पहचानेगा तू मिलेंगे रंग इतने यहाँ मिलने लगेगी  खोई हुई वो फुर्सत हर धड़कन संग गूँज रहा ये गीतरस हम में है ओजस  कहते थे हम , अब कह रहा सारा जहाँ हम से ये कारवां देखी कहाँ दुनिया तूने देखा एक नया जहाँ ओजस  हम में है ओजस  हम से ये कारवां