काश
माँ की कोख से निकलते ही लाल लहू से लिप्त, मेरे नंगे बदन को हॉस्पिटल की नर्स से श्वेत कपडे से लपेटा और मेरी माँ की गोद में रख दिया। मेरे नंगे बदन को पहला रिश्ता मिला - नर्स का दिया हुआ वो पहला श्वेत कपडा।समय के साथ कपडे के रंग बदले , रिश्ते जुड़ते गए और खुशियाँ बढती गई। किसे पता था की उन कपड़ो के धागे मुझे बांध रहे थे।हर धागे से एक रिश्ता बंधता जा रहा था और आज जब मेरी साँसे थक चुकी है, हर रिश्ता - हर धागा मुझे जाने से रोक रहा।आसूँ भी इन धागों को-जो दिख तो नहीं रहे पर मुझ से बंधे है- तोड़ न पा रहे। काश बिना रिश्तों के जैसे आये थे वैसे ही जा सकते।काश जैसे आते हुए सिर्फ मैं रोया था जाते वक़्त भी सिर्फ मैं ही रोऊँ। काश ये बिछडन का दर्द सिर्फ मुझे हो, मेरे कमाए हुए रिश्तों और उनसे जुड़े लोगो का न हो।
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