wo 30 din wahi

मैं हूँ यही पर अब आस्मां वो नहीं
कैलेंडर के वो ३०  दिन वही
पर ऋतू  है नई
ज़िन्दगी जो जी थी यादें बन गई
पर कैलेंडर के वो ३०  दिन वही

आजकल बस इतवार को फुर्सत रहती है
बाकी वारों में खुद को संवारते थोड़े पैसे कमाते
कैलेंडर की ओर देख के मुस्कुराते
और कहते हम है यही पर अब वो समां नहीं
कैलेंडर के वो ३० दिन वही , पर ऋतू है नई

वो दिन जब दिन गिनना आदत न थी
खुली फिजाओं सा बहना एक  राहत थी 
होती थी दिन दोपहरी शाम बेहिसाब मस्तियाँ 
ज़िन्दगी जो जी अब वो यादें बन गई
कैलेंडर के वो ३०  दिन वही,पर ऋतू है नई


Comments

Popular posts from this blog

शिष्टाचार के नियम

Haste Muskurate

Rab ka banda