जगा हूँ सूरज की अंगड़ाई के साथ
अब जीने की उम्मीद भी जगी है
सारी रात किनारों पे बैठ
सागर की कहानी सुनी है -
" बिखरी लहरों को बाँधे रखा हूँ
किनारों से बाँट के अपने एहसास, खुद को ज़िंदा रखा हूँ
कितने ही घाव दे इंसान मुझे
तड़पाये कोई मौसम कितना भी मुझे
न मरने का वो जज़बा ज़िंदा रखा हूँ "
सागर की ये कहानी सुन
मुशकिलो से लड़ने की हिम्मत आई है
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी लौट आई है
जगा हूँ सूरज की अंगड़ाई के साथ
अब जीने कि उम्मीद भी जगी है।
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