Posts

Showing posts from July, 2016

तिरंगा

कपड़ा श्वेत सा ही था वो अब  जो केसरी हरे रंगो से मिल कर जी उठा तिरंगा है मेरा  वो अशोक चक्र संयम है और देश की शान तिरंगा  है मेरा वो मीलों तक बस रहे  इंसानो को हिन्दुस्तानी बनाता दूर सरहदों पे उन्ही हिंदुस्तानियों के लिए लहराता कपड़ा श्वेत सा ही था वो पर अब तिरंगा है मेरा वो रंग से राग  बन रहा वो देश का केसरी जूनून , हरा विकास , श्वेत शक्ति , नील प्रगति गूँज रही ये धरती , दौड़ रहा ये लहू देश का गौरव है वो जो कपड़ा श्वेत सा ही था वो पर अब तिरंगा है मेरा वो

हम इंसान हुए

इत्तिफ़ाक़   से हम  इंसान हुए  वरना इस ज़मीन आस्मां  हवाओं  या सागर के हिस्से  होते  और न  ये बंदिशे होती न ये इंसानी किस्से होते  बस अपने ही जश्न में मग्न यूँ ही बहते रहते  पर इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए  चलो कुछ इन हवाओं सा ही बहना सीख जाते  सागर सा रहना सीख जाते साहिल हो पर फिर भी ज़मीन की खोज न  रुके प्रयास न रुके  आस्मां की नियत को अपनाए  मस्त मगन रहता पर हर मौसम में हाज़िर भी रहता  खुद के लिए बहता पर चाँद सूरज को भी सजाए रखता  इत्तिफ़ाक़ से हम इंसान हुए पर जश्न में मग्न हम हो सकते , इस प्रकृति सा हम भी बह सकते 

तारीफें तरीके

मैंने  तो अम्बर को नीला सा विशाल पाया और उसने अपनी कोरी  आँखों  के बावजूद अम्बर को गले लगाया। वो बिन देखे  महसूस करता था और मैं बिन  महसूस किये बस देख रहा था फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था, एक  नज़रिए  से दूजे तक के   सफर  को  ही  जीवन कहते  शायद ! तारीफें अलग थी , तरीके भी। मुस्कुरा के महसूस करता वो हर पत्तियों को, मुझे लगती वो पत्तियां गहरी हरी सी संजीवनी। वो लहरों को सुन कर उनसे गुफ्तगू करता , उनकी तारीफें उन्ही से करता, मुझे तो लहरें  जैसे श्वेत अश्वों की सेना  लगती। हर दिशा में हर कण में कुछ अद्भुत ढून्ढ रहे थे, तारफिों के पूल बाँध रहे  थे , उस खुदा का शुक्रिया कर रहे थे। मैं  देख सकता था , और मेरा दोस्त नहीं  -  पर हम  दोनो  अपनी तारीफें अपने तरीकों से इन हवाओं में  घोल रहे थे   फर्क  नज़रों  का नहीं नज़रिये का था, एक  नज़रिए  से दूजे तक के ...