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Showing posts from May, 2016

अनगिनत लम्हें

अनगिनत लम्हें है इंतज़ार में बीत गए लम्हे  वो जो बीत गए नए लम्हों को नए ढंग  से जीना बासी हो चुके वो जो लम्हे उन्हें न छूना मचले का दिल उन लम्हों को दोहराने को फर्क क्या रह जायेगा फिर , रुक सा जायेगा जैसे चलता हुआ मुसाफिर न बदलेगा समां , न लम्हों को जीने का ढंग खुशियां भी गणित सी मालूम होने लगेंगी दो दूनी चार के  हिसाब सी हो जाएँगी रहने दो खुशियों  को अनन्त सी बेहिसाब ही अनगिनत  लम्हे है इंतज़ार में नए लम्हों को नए ढंग से जीना ही है सही

हमारी लाडली

जश्न की गठरी अपने नन्हे हाथो में मेरे आँगन  की रौशनी अपनी किलकारियों में समेटे जब तू आई  - नमन हुआ मैं उस क्षण से कहता रहा , कहता हूँ हर बार तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार न जाने जग को क्यों तुझ में अँधेरा दिखे  मेरे लिए तू इस जग का  रोशन सवेरा संग लाई अपनी कहानी कुछ यूँ लिखेगी अपने भैय्या को पीछे छोड़ देगी वो भी गर्व से कह उठेगा ,जो लड़ता था तुझ से हर  बार  तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार मेरी बेटी बनकर ,रिश्तों में रंग भर कर तूने समझया- तू न  हो तो माँ न हो, ये जग न हो  तुने वो शक्ति है पाई - नमन हुआ मैं   उस क्षण से कहता रहा , कहता हूँ हर बार तू है हमारी लाडली , हमारी लाडली लाई बहार 

salaam-e-shukran

ज़िन्दगी  बीत जाती है ज़िन्दगी को  समझने में रह जाती है यादें अगर जी  हो ये ज़िन्दगी हमने  वक़्त के साथियों  को देखो ज़रा  रात की करवट  सुबह  लाती है  बरसात की फुहार बहार  लाती है   और हम वही उलझे रह जाते - कुछ  गिलो कुछ  शिकवों  को दिल से  लगाए  न कभी करवट लेते  रात की तरह ,न बहते बारिश की  तरह  आज  कुछ ऐसा करें की खुद की धड़कने  मुस्कुरा उठे  गिलों  शिकवो के जालों को साफ करें, सालम-ए -शुक्रन से सबको  माफ़ करें