वो एक पल
उस पल में सारा जहाँ बेगाना लगने लगा ये आस्मां भी ठगने लगा कल तक बस में था,आज परे भागने लगा चाँद का श्वेत रंग भी आस्मां में घूल गया अमावस्या कहते लोग उसे, पर मेरा एक सहारा -जैसे वो भी धुल गया ये आस्मां भी ठगने लगा सारा जहाँ बेगाना लगने लगा वो पल सारे रंग उड़ा ले गया वृक्ष नदी फूल या हो कलियाँ खालीपन में गूँज रही थी मेरी सिसकियाँ रौशनी के झील में डूब रही मेरी सिसकियाँ खुद से लड़ के निकल पड़े फिर से इस जहाँ को अपना बनाने कि कोशिश में