Mang lun udhar

बेरंग पत्तों की आहट सुनी सुनी  सी लग रही थी
वो टूट कर बिखर रहे थे
शाखाओं से गिर के उड़ रहे थे
ठोकर लगी ,होश संभाला
तो पाया  वो वो पत्ते मेरी ज़िन्दगी  के आयेने है
जो टूट कर बिखर रही थी.....
फ़र्क सिर्फ इनता था
मेरी ज़िन्दगी में  जान बाकि थी और उन पत्तों में  जूनून
मुरझाये तो भी आंसू नहीं ,
मौसम की छाया में फिर खिलने की  चाह  नई
मांग लूँ  उधार ये फितूर
फिर हो मुश्किलें  चाहे  बेहिसाब
पिघल जाएगी हर मुश्किल
जल उठेगी अगर वो जूनून की आग !!!!!

असमान की कोशिश थी
सागर को नीले नकाब से वो  ढँक दे
पर सागर की कोशिश थी की वो नकाबों में न ढले...
ठोकर लगी होश समभाला
तो पाया सागर की मुश्किलें मेरी ज़िन्दगी से कम  न  थी ....
फर्क  सिर्फ इतना था
मेरी ज़िन्दगी हार मान चुकी थी..और सागर की कोशिशो का अंत न था...
लहरों में  खुद को बाँट कर..किनारों तक आने की कोशिश वो करता रहा...
सदियाँ बिता दे...उस नीले नकाब को उतारने  की कोशिश में....पर न  थकता रहा...
मांग लूँ उधर ये कोशिश की चाहत
फिर हो मुश्किलें  चाहे  बेहिसाब
बह जाएगी हर मुश्किल
जब उमड़ेगा कोशिशों का वो सैलाब!!!!!!!



Comments

  1. sai hai never never never give up....<3 <3 :*)

    ReplyDelete
  2. iska kch credit teko jata hai...;)

    ReplyDelete
  3. bhai ...who so ever you are, you write awesome!
    keep going! :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. thanks !!!!
      keep reading :)
      keep sharing :)
      cheers!!!!!

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

शिष्टाचार के नियम

Haste Muskurate

Rab ka banda