wo makadi mashoor ho gai

मानो जैसे वो मकड़ी मशहूर हो गई....
मैं अपने जाल में फसा था....और वो अपना जाल बून रही थी.....
मैं तन्हा बैठा था....वो अपने में मग्न थी.....
खुछ इस तरह आकर्षित कर रही थी वो...
जैसे पत्तो पे ओस की बुँदे न हो....हीरे हो वो....
मकड़ी न हो..ध्रुव सितारा हो वो.....
मानो जैसे वो मकड़ी मशहूर हो गई....

मेरे लिए तो चार दिवारी थी और एक खिड़की का नज़ारा था...
पर उस जान के लिए तो बस एक कोने का सहारा था...
फिर भी आंसू थे आँखों में मेरे....और वो थी बेपरवाह सी...
आँखों को छुपा लिया उसने कहीं..और अपने में मग्न थी....
मेरे दिमाग पे छा गई हो जैसे मानो वो मकड़ी मशहूर हो गई....

न खबर उसे अपनी चर्चा की..न गम उसे अपनी तन्हाई का...
हर दम लगा कर जाल बून रही थी वो....अपने में मग्न थी वो..
न खोट किसी के लिए न नकाब किसी झूठे एहसास का...
फिर भी गिरना लिखा है  खुदा ने हर कदम पे उसके...
हम तो फिर भी इंसान है... 
सो गिरेंगे तभी तो संभलेंगे..और यूँ तन्हा बैठ कर
उस मकड़ी की जंग को जियेंगे जैसे मानो वो मकड़ी मशहूर हो गई!!!!

बैठा था मैं यूँही....और हवा के झोके ने दस्तक दी.........
एक झटके में सब बिखेर दिया....उस मकड़ी की मेहनत
मकड़ जाल...पर मुझे एक आंसू न दिखा उसका...
हो खबर इस बात की उसे...मनो बेपरवाह सी वो..
न गम अपनी मेहनत बिखर जाने का...चल दी वो किसी और गली....
मेरे ख्यालों में कई सवाल छोड़ कर...मनो वो मकड़ी मशहूर हो गई!!!!

Comments

  1. Such a beautiful composition!!
    Wo makdi mashhoor ho gyi..
    Felt refreshed after reading this.. Kudos Snehil!! :)

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  2. thanks uva.....:)
    if u really felt refreshed.....my aim achieved :) :) :)

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