Udaan

ख्वाब पिरोये थे तब इस बात का  गम न था...
दूर देखा अब तो आसमां और दरिया का मिलन था...
मंजिल इस मिलन में कहीं खो गयी.....
रास्ते न जाने कहाँ उलझ गए....
साहिलों की चादर या आसमां का घर......
कठिन  हो चली  थी ये   डगर.......
पर कश्ती जो साहिल छोड़े लौट के ना आये...
मौके जो आये दौबारा न मिल पाए....
उड़ने दो ख्वाबों के पंख लगा कर.....
आसमां दरिया के मिलन का भरम  भुला कर...
एक जूनून बस में कर, खुद को खो कर!!!!
ये उड़ान जी कर
ये उड़न जी कर

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