jeet ka jshn mana lo,rooh apni haar kar

 चलता चल ए राही.....
ज़िन्दगी के..ए सिपाही
जोश से भरे इस दिल में
जीत का ज़स्बा हर पल में
 माथे पे क्यूँ है तेरी ये फिकर


मना ले जष्न  जीत का
रूह अपनी हार कर!!!!!!!

रोक सके न कोई तुझे
लगा दे अपनी जान सारी
अम्बर तेरा, तेरा  ये सागर...
कोशिश की नय्यिया दोब्ने न पाए  
अपने करम तू बस करता चल ....
गूंजे उठेंगे जीत के  स्वर .....

मना ले जष्न  जीत का
रूह अपनी हार कर!!!!!!!

Comments

  1. Well nice poetry BTW.
    but i feel that it doesn't support the title much, it feels like the character has already lost.

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