मन की गठरी
मन की गठरी लिए साँझ सवेरे
कल कई बातें यादें संग लिये
इक्कठा की है कुछ बातें कुछ दिलासे
कुछ डर की गांठे कुछ उम्मीदों के धागे
सब बंद है इस मन की गठरी में
सोचा है , हवाएँ रुके तो खोलूंगा इसे
वरना सब बह जाएगा
सुकून रह जायेगा
पर वो सुकून भरी रात से भाग रहा
बेवजह ये गठरी को लाद रहा
इक्कठा कर मुस्कुराहटें मीठी यादें
न डर की गांठे नअ दिलासे
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