खता ना थी

यारों के संग चलते हुए न जाने कब वो मोड़ आ गए 
कुछ यार आगे बड़  चले , कुछ मुड़  गए , कुछ ठहर गए , उस मोड़ की खता ना  थी 
ज़िन्दगी ने तो दिए यार , चाहते थी  सबकी अलग , सो बिछड़ गए 
इस ज़िन्दगी की भी खता ना  थी 
बिखरे है हम यूँ मोतियों की तरह , बिखर कर बस रहे एक ही सागर में
वो सागर यूँ विशाल , उस सागर की खता ना  थी 
मिलें पाये हम किसी शहर , किसी लहर - है अब यही दुआ है 
हो जाता दिल उदास कभी कभी उनकी याद में  , उस दिल की खता न थी  

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