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Showing posts from July, 2012

yaarian

बेफिक्र बेखबर हो रहे पल खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. हवाओं में घुल कर जिन्दगिया बदल रही घूम घूम कर सारे रास्ते नापते रहेते है संग कभी गिर कर कभी गिरा कर हाफ्ते रहते है संग फिर एक घेरा बना कर....मुट्ठिया यूँ खोलते मनो फिजाओं को आज़ाद हो हम करते खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. घोड़ो पे सवार रफ़्तार की रेस हर पल तू हारे मैं जीतूँ...जीत कर तुझ संग ही वो जीत मैं बाटूँ एक जोश बहता रहे युही , हो जब संग फुरसतो के लम्हे बिठाये  बिताये  बेफिक्र हो कर इशक जताए खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही.. बारिशो में वो ज़मीन पे पानी बारी बारी भीग कर फिर ब्यान करना अपनी ही जुबानी ठण्ड से ठितूर कर हवाओं से लड़ कर, करना मन मानी और मुट्ठिया यूँ खोलते मनो फिजाओं को आज़ाद हो हम करते खुश रहने की वजह यूँही मिल रही यारियां सारी हवाओं में घुल रही..

Jazbaat

जब जज्बातों को खेल समझने लगे कोई खुद को दो कदम दूर कर  लो उनसे.. वरना हर जज़्बात  की एक नई बिसात मिलेगी.. हर कदम पे मात मिलेगी... क्यूंकि वो खेल समझ रहे थे और हम इंसान बनने चले थे... अपना समझ कर ज़िन्दगी बाँटने चले थे... दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ.. उनकी तो परछाई भी झूठी थी.. हर पुकार बस एक गूँज थी... मतलबी रंग में डूबी.... क्यूंकि वो जज्बातों से जीतना चाहते थे और हम जज्बातों को जीना चाहते थे... अपना समझ कर ज़िन्दगी बांटने चले थे....... दो कदम दूर हुए तो एहसास हुआ.. उनके आगे बड़ जाने का... इस बात से बेफिक्र की कोई पीछे छुट रहा था.. वो नए साथी ढूंड रहे थे...नए खिलाडी...नए नकाब..नई  चाल पर जज़्बात तो दिल से निकलते है... फिर चाहे चहेरे  बदल जाएँ ... क्यूंकि इंसान का वजूद है ये जज़्बात और वो इस वजूद को झूठला रहे थे.. अपनी ज़िन्दगी में कितनो से टूटते जा रहे थे। दुआ है रब से अपने द्वार बुलाये उस इंसान को सिखला दे ज़िन्दगी के नियम जहाँ इंसानों से खेलने का हक सिर्फ उस रब को है इंसान को नहीं ...

Jab zindagi kho rhi thi

जब जब ज़िन्दगी गहेरे सन्नाटों  में खो रही थी.. जब जब शोर से डर लगने लगा था... आँख बंद कर के दिल के समंदर में छलांग लगाई..... तो पाया ज़िन्दगी मुझ में ही थी... बहार तो बस किनारे बस रहे थे.. बाहें खोल कर जब सागर को महसूस किया तो समझा लहरों की तरह जीना... कभी संग तिनका बहे...कभी मोती... कभी बेवजह यूँही... हर तरीके को मुट्ठी में ज़िन्दगी बना कर.. हवा के साथ कुछ यूँ छोडू की हर दिशा में ज़िन्दगी हो... ज़िन्दगी जीने के तरीके और संग संग वो रंग भी भिखरे जिन्हें सन्नाटों ने  फीके कर दिए थे... शोर में जो  रंग कही पीछे छुट गए थे।....