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Showing posts from April, 2012

aankhen

राज़-ऐ-दिल है कई इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं बयां कर देते वो हर बात... जिसके लिए जुबान ने किया था इंकार बेहिसाब एहसासों को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में कुछ  एहसास ख़ुशी के...कुछ गम के.. और कुछ राज़  बन कर ठहर गए इस दिल  में.. पर ये आँखें न सम्भलें,बयां करे राज़-ऐ-दिल कई.... काश  इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं ज़िन्दगी कुछ कहानियाँ बुन रही थी.. हर लम्हे  के लिए एक नया रंग चुन रही थी... उन लाखों रंगों की ख्वाहिश  को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में  कुछ रंग रंगीले से...कुछ फीके से रह रहे थे इस दिल में.. पर ये आँखें न  सम्भलें,छलका दे हर वो रंग.... काश इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं.... संग मेरे मेरा सनम भी था... वो रंग वो एहसास सारे देख रहा रंगीले से रंग और खुशियों के एहसास को वो भी जी रहा.. पर उन फीके रंगों के लिए... फिजाओं में उसकी फ़िक्र बहने लगी... इसी बहाने नज़दीकियाँ  बढ़ने  लगी...इश्क बढ़ने लगा... आँखों के शीशों को  छुपाने ...

Behta chal

मूक बन खड़ा क्या तक रहा रफ़्तार की भांप क्या नाप रहा रही है तू चालत चल नदी है तू बहत चल थम कर जम कर बहते पानी ने क्या पाया रही है तू चालत चल नदी है तू बहत चल।। जियन मरण तो लगा रहेगा,पर जीवन लय में तू न बहेगा अगर छुट जाएगी टूट जाएगी ये डोर न रुक न शुक इस लय में हर सुख हर दुःख इस लय में बहता चल न थम कहीं रफ़्तार से जीवन...जीवन की रीत यही। हर फूल हर कलि किरण आगे बढ़ रहे ऋतुओं की धरा में बदल रहे न थम रहे न जम रहे...इस जीवन की रफ़्तार में बढ़ रहे तू तो फिर भी मानव का रूप है पावन धरती पर जीवन का स्वरुप है फिर क्यूँ थक रहा..अपने आप से झिझक रहा?? खोल बाहें इस सफ़र में जी कर जीत जा ये जीवन दिल है तू धड़कता जा रौशनी है तू बहता जा कैद होकर उस रौशनी ने क्या पाया.. दिल है तू धड़कता जा रौशनी है तू बहता जा ।।

Ye Kahaniya

बस मैं नहीं दिल की बस्तियां मचल रही आँखों की कश्तियाँ लहरों की बाहों में है किनारे मेरी बाहों में तू आजा रे... मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ इश्क के मौसम की है ये  निशानियाँ तेरे संग बीताये वो बारिश के लम्हे भीगे आसमान तले...मुस्कुराते हम दो परिंदे.. आज भी उड़ता हूँ उन लम्हों को याद कर... जब बारिश की बूंदों  को हमने मोती बना दिया.... इश्क जाताना था सो आस्मां पे चाँद सजा दिया.... मैं हु....तुम हो....और ये कहानियाँ इश्क के मौसम की ये है निशानियाँ हवा के झोकों  पे शहर न बसा तू.. इश्क की गलियों में मुझको न फसा तू.. बारिश में साथ घुमे तो इश्क कहाँ हुआ.... खुशिया संग बाट ली तो इश्क कहाँ हुआ... मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ... न तो इश्क है...ना ही इश्क के मौसम की निशानियाँ.. फूलों के तोफ्हे जो भी तुने दिए थे... फूल ही तो थे....ये सोच  के मैंने  लिए थे... चाँद को खुदा ने सजा रखा है...तुमने तो बस  यूँही कहा है.... खुशिया हर पल मिली तेरे संग...पर इश्क कहाँ हुआ... मैं हूँ...तुम हो....पर ये कहानियाँ... न...