aankhen
राज़-ऐ-दिल है कई इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं बयां कर देते वो हर बात... जिसके लिए जुबान ने किया था इंकार बेहिसाब एहसासों को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में कुछ एहसास ख़ुशी के...कुछ गम के.. और कुछ राज़ बन कर ठहर गए इस दिल में.. पर ये आँखें न सम्भलें,बयां करे राज़-ऐ-दिल कई.... काश इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं ज़िन्दगी कुछ कहानियाँ बुन रही थी.. हर लम्हे के लिए एक नया रंग चुन रही थी... उन लाखों रंगों की ख्वाहिश को समेट कर एक दिल बना कर रखा है सिने में कुछ रंग रंगीले से...कुछ फीके से रह रहे थे इस दिल में.. पर ये आँखें न सम्भलें,छलका दे हर वो रंग.... काश इन आँखों के शीशों को छुपालू कहीं.... संग मेरे मेरा सनम भी था... वो रंग वो एहसास सारे देख रहा रंगीले से रंग और खुशियों के एहसास को वो भी जी रहा.. पर उन फीके रंगों के लिए... फिजाओं में उसकी फ़िक्र बहने लगी... इसी बहाने नज़दीकियाँ बढ़ने लगी...इश्क बढ़ने लगा... आँखों के शीशों को छुपाने ...