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ऊन से रिश्ते

उलझे ऊन के गुच्छे मुझे याद दिलाते है मेरे रिश्तों की जिन्हे बुनने कि कोशिश करता आ रहा हूँ एक गाँठ खुलती , एक खुद-ब-खुद उलझ जाती। दादी का वो आँगन में बैठ गुठनो को  सजा कर ऊन को  सुलझाना याद आता है दादी ने सुलझा दी  ऊनी गठाने रिश्तों को  न संभाल पा रहा कोई  दो पल फुर्सत के मिले तो किसी आँगन में बैठ रिश्तों कि सारी गाँठें  सुलझा ले !!!!