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Showing posts from July, 2013

मैं ये करूँगा वो करूँगा

मैं ये करूँगा वो करूँगा हवाओं को मोडूँगा असमान  को तोडूंगा टूटेगा बादल, बिखरेगी  बरखा तब ही तो मानेगा जश्न जश्न की जान बनूँगा, मैं ये करूँगा वो करूँगा।। दीवारों पे तारीखें लिख लिख के गिनी है खाली बस्ता तैयार रखा है सारे अरमानों को पूरा करूँगा सुनाई दे रही वो सिक्कों की खनक आये नहीं जेबों में जो अब तक पर फिर भी सोचा है वो करूँगा ये करूँगा।। दो पैसे कम तो  करो पूरी रात खरीदूँगा संग होंगे सब, संग होगा मेरा रब तब ही तो मानेगा जश्न जश्न की जान बनूँगा मैं ये करूँगा वो करूँगा।।

मन की गठरी

मन की  गठरी लिए साँझ  सवेरे कल की बातें यादें संग लिए इक्कठा की  है कुछ बातें कुछ  दिलासे कुछ डर की गाँठे ,कुछ  उम्मीदों के धागे सब  बंद है इस मन की गठरी में हवाएं रुके तो  खोलूँगा सोचा है वरना सब बह जायेगा सुकून रह जयेगा पर वो सुकून भरी रात से भाग रहा बेवजह ये गठरी को लाद रहा इक्कठा कर मुस्कुराहटें , मीठी यादें न डर की गाँठे न दिलासे खोलेगा जब जब ये गठरी मेहेकी मुस्कुराहटें हवाएँ चलेंगी फैलेंगी मुस्कुराहटें चल पड़ेगा फिर से तू बादलों के शहर की डगर पर मिलेंगे फिर कहीं किसी मोड़ पर नए दिलासे नया डर मत घबराना तू  ,मासूम सा मन  है माटी  का तू तेरा तन  है मत घबराना तू  , मासूम सा ये मन है।