kabhi kabhi
कभी कभी ये असमान यूँ नीला लगे जैसे सागर की छत हो... कभी कभी ये सागर की लहरें यूँ लगें जैसे बादलों की करवट हो.... कभी कभी ये दिल धड़कने के लिए मचलता है.... कभी कभी मचलने के लिए धड़कता है...... और मैं बेबस खड़ा मुस्कुरा रहा था....खुद को गले लगा रहा था..... कभी कभी इन तितलियों के रंगों को समझू मैं.. कभी कभी उन्ही रंगों को जीवन में तलाशू मैं..... कभी कभी इस रात की चादर में खुद को छुपा लू... और कभी सूनी राहों में एक पल छाया मांग लू...... हर हरकत में कुछ सवाल थे....पर अकेला था दिल..सो धड़कता जा रहा था.... और मैं बेबस खड़ा मुस्कुरा रहा था...... कभी कभी एहसास हो प्यार का तो दिशाएं संग झूमे... और कभी इन्ही दिशाओं में गुम हो जाये दिल..... कभी कभी तन्हाईओं में सुकून मिले.. और कभी दिल पुकारे अपने सहारे को.... इस मन के हर रंग अजीब है.....कभी कभी यूँ सोच रहा था मैं.... साथ ही मुस्कुरा रहा था.....खुद को गले लगा रहा था......