वक़्त की लहर
वक़्त की लहर बह रही है तू साहिल पर है - न जाने क्या गलत क्या सही है कुछ अजीब सा लगे सब - जबकि तू वो ही है ,जहाँ भी वही है वक़्त की लहर बह रही है बह कर बिखरती है साहिल पर, तोड़ जाती है वो रेत के महल , फिर प्यार से सहलाती है वो लहर शायद कुछ सीखा रही हो मनो तू साहिल पर है - न जाने क्या गलत है क्या सही है बस प्रयास करता चल, खुद से सच बोलता चल धुंद की चादर हटाता चल , गिर कर उठा है वो जो आस्मां तक उड़ा है तेरी उड़ान अभी बाकी है , बाकी है आने वाला पल