Posts

Showing posts from November, 2016

उम्र ,गिनती और गणित

उम्र ,गिनती और गणित घूम रहा ये धरती का गोल एक हिसाब वहाँ से बाकी गणित की किताब से गिनती निकली अपनी सेना ले के अनगिनत सिपाही उसके हमारी उम्र तो बस खुशाल ज़िन्दगी थी जब तक न मिली थी इस सेना से अब उम्र भी एक संख्या सिपाही है एक बरस में मोर्चा अगली संख्या को  मिलती है आज फिर से कसम खाते है उम्र को संख्या सिपाही से आज़ाद कराएँगे उम्र हमारी बिना गिनती के , बस उसे एक खुशाल ज़िन्दगी बनाएंगे  

मासूम

 मासूम सी मेरी ज़िन्दगी माँ पा  के हाथों के सहारे संभल रही थी हर डगर उनकी , मेरी भी डगर बन रही थी बेफिक्र हो कर बस गुब्बारे को पकड़ना था बारिशों में छतरी के बहार झांकना  था वो मासूमियत मेरी जान मेरी ज़िन्दगी थी मेरी ज़िन्दगी मेरी जान अभी भी है बस मासूम नहीं है शायद अब ज़्यादा फ़िक्र है बरसात मैं गीले होने की अब ज़्यादा फ़िक्र है गुब्बारे के फ़िज़ूल होने की अफ़सोस न कोई ,क्योंकि जब जब टकराता हूँ किसी नन्ही जान से उसके बचपन से तो मेरी मासूमियत जी उठती और मुस्कुराहटें ही मुस्कुराहटें चारों दिशा गूँज उठती