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समय

कण कण सज कर बने ये नाज़रे आँखों के सामने है सारे के सारे हम  भी यही  ये कण भी  सारे यही पर  कुछ आगे बढ़ रहा , कुछ भी  स्थिर नहीं घूम रही ये धरती , धोखा लगता है पर नहीं ! है सब सामने और हम भी वही पर  कुछ भी  स्थिर नहीं ,कुछ तो आगे बढ़ रहा है  वो समय , ये  आसमान ये  ज़मीन ये बरखा ये  लय सबको बाँधे हुए है ये समय